हर एक बात पे कहते हो तुम की तू क्या है,
तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है..................$$$$$
रगों में दौड़ते फिरने के हम नही कायल,
जो आँख ही से ना टपका तो फिर लहू क्या है..................$$$$$
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मैं अकेला ही चला था जानिबे मंजिल मगर,
लोग साथ आते गए और कारवां बनता गया..................$$$$$
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जब मैंने कहा की मरता हूँ, मुंह फेर के बोले,
सुनते तो हैं पर इश्क के मारे नहीं देखे..................$$$$$
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कलेजे में हजारों दाग ,दिल में हसरतें लाखों,
कमाई ले चला हूँ साथ अपने जिंदगी भर की..................$$$$$
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कह दो इन हसरतों को कहीं और जा बसें,
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दागदार में..................$$$$$
उमर-ऐ-दराज मांग कर लाये थे चार दिन,
दो आरजू में कट गए, दो इंतजार में..................$$$$$
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हमने हर दौर में तजलील सही है लेकिन
हमने हर दौर के चेहरे को ज़िया बख्शी है..................$$$$$
हमने हर दौर में मेहनत की सितम झेलें हैं
हमने हर दौर के हाथों को हिना बख्शी है..................$$$$$
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इश्क में ग़ैरत-ए-जज्बात ने रोने ना दिया
वरना क्या बात थी किस बात ने रोने ना दिया..................$$$$$
आप कहते थे के रोने से ना बदलेंगे हालात
उम्र भर आप की इस बात ने रोने ना दिया..................$$$$$
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दश्त-ए-तन्हाई में ए जान-ए-जहां लर्जां हैं
तेरी आवाज़ के साए तेरे होंठो के सराब..................$$$$$
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के खस-ओ-ख़ाक तले
खिल रहे हैं तेरे पहलू के समन और गुलाब..................$$$$$
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उठ रही है कहीं कुर्बत से तेरी सांस की आंच
अपनी खुशबु में सुलगती हुई मद्धम मद्धम..................$$$$$
दूर उफक पर चमकती हुई कतरा कतरा
गिर रही है तेरी दिलदार नज़र की शबनम..................$$$$$
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उस कदर प्यार से ए जान-ए-जहां रखा है..................$$$$$
दिल के रुखसार पे इस वक़्त तेरी याद ने हाथ
यूं गुमां होता है गरचे है अभी सुबह-ए-फिराक..................$$$$$
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गयी वस्ल की रात
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बेनाम सा ये दर्द ठहर क्यूं नहीं जाता
जो बीत गया है वो गुज़र क्यूं नहीं जाता..................$$$$$
देखता हूं मैं उलझी हुई राहों का तमाशा
जाते है जिधर सब मैं उधर क्यूं नहीं जाता..................$$$$$
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अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं
कुछ शे़र फ़क़त उनको सुनाने के लिए हैं..................$$$$$
अब ये भी नहीं ठीक कि हर दर्द मिटा दें
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं..................$$$$$
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सब्र कहता है कि रफ्ता-रफ्ता मिट जाएगा दाग,
दिल कहता है की बुझने की ये चिंगारी नही..................$$$$$
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खुश भी हो लेते हैं तेरे बेकरार,
गम ही गम हो ,इश्क में ऐसा नही..................$$$$$
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लोग कहते हैं तो लोगों पे ताज़ुब कैसा
सच तो कहते हैं कि नादारों की इज्ज़त कैसी..................$$$$$
लोग कहते हैं - मगर आप अभी तक चुप हैं
आप भी कहिये ग़रीबों में शराफत कैसी..................$$$$$
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आप बेवजह परेशान सी क्यों हैं मादाम
लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होंगे..................$$$$$
मेरे अहबाब ने तहजीब ना सीखी होगी
मेरे माहौल में इंसान ना रहते होंगे..................$$$$$
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मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा..................$$$$$
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
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किसको आती है मसीहाई किसे आवाज दूँ
बोल ए खूंखार तन्हाई किसे आवाज दूँ..................$$$$$
चुप रहूँ तो हर नफ़स ड्सता है नागन की तरह
आह भरने में है रुसवाई किसे आवाज दूँ..................$$$$$
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इस का गिला नहीं की दुआ बे-असर गई
इक आ़ह की थी वो भी कहीं जा के मर गई..................$$$$$
ए हमनफ़स ना पूछ जवानी का माजरा
मौज-ए-नसीम थी, इधर आई उधर गई..................$$$$$
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दिल में किस दर्जा बेदिली है अभी
हर खुशी जैसे अजनबी है अभी ..................$$$$$
फिर बढे हैं क़दम तेरी जानिब
तेरे गम में भी दिलकशी है अभी..................$$$$$
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दुःख फ़साना नहीं के तुझ से कहें ..................$$$$$
दिल भी माना नहीं के तुझ से कहें
आज तक अपनी बेकली का सबब
खुद भी जाना नहीं के तुझ से कहें..................$$$$$
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अब वही हर्फ़-ए-जुनून सब की जुबां ठहरी है
जो भी चल निकली है वो बात कहाँ ठहरी है..................$$$$$
आज तक शैख़ के इकराम में जो शय थी हराम
अब वही दुश्मन-ए-दीन राहत-ए-जान ठहरी है..................$$$$$
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जब कभी बिकता है बाज़ार में मजदूर का गोश्त
शाहराहों पे गरीबों का लहू बहता है..................$$$$$
आग सी सीने में रह रह के उबलती है, ना पूछ!
अपने दिल पर मुझे काबू ही नहीं रहता है..................$$$$$
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जब कहीं बैठ के रोते हैं वो बे-कस जिनके
अश्क आंखों में बिलखते हुए सो जाते हैं..................$$$$$
न-तावानों के निवालों पे झपटते हैं उकाब
बाज़ू तोले हुए, मंडराते हुए आते हैं..................$$$$$
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तुम न आये तो क्या सहर न हुई ..................$$$$$
हां मगर चैन से बसर न हुई ।.
तुम भी अच्छे ,रक़ीब भी अच्छे ।
मैं बुरा था ,मेरी गुज़र न हुई ..................$$$$$
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आ कि वाबिस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझसे ..................$$$$$
जिसने इस दिल को परीख़ाना बना रखा था
जिसकी चाहत में भुला रखी थी दुनिया हमने
दहर को दहर का अफ़साना बना रखा था..................$$$$$
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सुना है ग़ैर की महफ़िल में तुम न जाओगे
कहो तो आज सजा लूँ ग़रीबखाने को..................$$$$$
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अब आगे इसमें तुम्हारा भी नाम आयेगा
जो हुक़्म हो तो यहीं छोड दूँ फ़साने को..................$$$$$
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मुझे खैरात में मिली खुशीया अच्छी नही लगती फराज
मै अपने दुखोमे रेहता हू नवाबोकी तऱ्ह..................$$$$$
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मै खुदाके नजरोमें कैसे न गुनेह्गार होता फराज
के अब तो सजदोमेभी वो याद आने लगे..................$$$$$
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कुसूर नही इसमे कुछभी उनका फरज
हमारी चाहतही इतनी थी के उन्हे गुरुर आ गया..................$$$$$
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वापसीका सफर अब मुमकिन न होगा फरज
हम निकल चुके है आखसे आसू कि तऱ्ह..................$$$$$
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अपने मुक़द्दरमें लिखा तो मिल जायेगा ए खुदा........................$$$$$
मुझेको वोह चीज अदा कर जो मेरी किस्मत में ना हो........................$$$$$
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अपने सिवा बाताओ तुम्हे कूछ मिला है फरज..................$$$$$
हजार बार ली है तुमने मेरे दिल कि तालाशीयां..................$$$$$
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अपने मुक़द्दरमें लिखा तो मिल जायेगा ए खुदा........................$$$$$
मुझेको वोह चीज अदा कर जो मेरी किस्मत में ना हो........................$$$$$
बहुत ही खूबसूरत बात कही है,शायर ने...................$$$$$
एक उम्दा शेर के लिए आपको धन्यवाद...................$$$$$
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जुनून-ए-शौक अब भी कम नहीं है
मगर वो आज भी बरहम नहीं है..................$$$$$
बहुत मुश्किल है दुनिया का संवरना..................$$$$$
तेरी जुल्फों के पेच-ओ-ख़म नहीं है
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मैं चाहता भी यही था वो बेवफा निकले,
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले..................$$$$$
किताब ए माजी के औराक़ उलट के देख ज़रा,
ना जाने कोनसा सफा मुङा हुआ निकले..................$$$$$
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अपने हर हर लफ्ज़ का खुद आईना हो जाऊँगा ,
उस को छोटा कह के मैं कैसे बड़ा हो जाऊँगा..................$$$$$
तुम गिराने में लगे थे तुम ने सोचा ही नहीं,
मैं गिरा तो मसला बन कर खड़ा हो जाऊँगा..................$$$$$
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बर्बाद तमन्ना पे अताब और ज़्यादा
हाँ मेरी मोहब्बत का जबाव और ज्यादा..................$$$$$
रोये ना अभी अहल-ए-नज़र हाल पे मेरे
होना है अभी मुझ को खराब और ज्यादा..................$$$$$
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चेहरा मेरा था निगाहें उसकी ,
खामुशी में भी वो बातें उसकी..................$$$$$
मेरे चेहरे पे ग़ज़ल लिखती गयीं ,
शेर कहती हुई आँखे उसकी..................$$$$$
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हमारी दास्ताँ शहरों की दीवारों पे चस्पां है,
हमें ढूंढेगी दुनिया कल पुराने इश्तहारों में...................$$$$$
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हश्र के दिन मेरी चुप का माजरा,
कुछ न कुछ तुम से भी पूछा जाएगा..................$$$$$
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जब आप जा ही रहे हैं तो तकल्लुफ़ कैसा,
ये जरुरी तो नहीं हाथ मिलाया जाए..................$$$$$
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ईरादे बांधता हूँ , सोचता हूँ, तोड़ देता हूँ,
कहीं ऐसा ना हो जाए, कहीं वैसा ना हो जाए..................$$$$$
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तुम मेरे लिये अब कोई इल्जाम ना ढूंढो ,
चाहा था इक तुम्हे यही इल्जाम बहुत है..................$$$$$
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इक उमर कट गई है तेरे इंतजार में,
ऐसे भी हैं कि कट न सकी जिनसे एक रात..................$$$$$
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खैर गुजरी की न पहुँची तेरे दर तक वरना,
आह ने आग लगा दी है जहां ठहरी है..................$$$$$
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आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक,
कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होने तक..................$$$$$
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वो आए बज्म में इतना तो 'मीर' ने देखा,
फिर उसके बाद चिरागों में रौशनी न रही..................$$$$$
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लिपटा मैं बोसा लेके तो बोले की देखिये,
ये दूसरी खता है वो पहला कसूर था..................$$$$$
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वो भी मेरे पास से गुजरा इसी अंदाज से,
मैंने भी जाहिर किया,जैसे उसे देखा ना हो..................$$$$$
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तुम ना आओगे तो मरने की हैं सौ तदवीरें,
मौत कुछ तुम तो नहीं हो कि बुला भी न सकूं..................$$$$$
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जब तक जिये, बिखरते रहे,टूटते रहे,
हम साँस -साँस क़र्ज़ की सूरत अदा हुए..................$$$$$
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दो -चार लफ्ज़ कह के मैं खामोश हो गया,
वो मुस्करा के बोले,बहुत बोलते हो तुम..................$$$$$
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मत पूछ क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख की क्या रंग है तेरा मेरे आगे..................$$$$$
ईमान मुझे रोके है तो खींचे है मुझे कुफ्र,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे..................$$$$$
गो हाथ को जुम्बिश नहीं, आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी सागर-ओ-मीना मेरे आगे..................$$$$$
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