हुए जिसपे मेहरबां तुम कोई खुशनसीब होगा,
मेरी हसरतें तो निकलीं मेरे आंसुओं में ढलकर,
थमे आँसू तो फिर तुम शौक़ से घर को चले जाना,
कहाँ जाते हो इस तूफ़ान में पानी ज़रा ठहरे,
सदफ की क्या हकीकत है, अगर उसमें न हो गौहर,
न क्यों कर आबरू हो आंख की मौकूफ आंसू पर।,
रो लेते हैं कभी कभी,
ताकि आंसुओं को भी कोई शिकायत ना रहे,
एक आँसू ने डुबोया मुझ को उन की बज़्म में,
बूँद भर पानी से सारी आबरू पानी हुई.
हमारे आंसू पोंछ कर वो मुस्कुराते हैं,
इसी अदा से वो दिल को चुराते हैं,
हाथ उनका छू जाये हमारे चेहरे को,
इसी उम्मीद में हम खुद को रुलाते हैं.
वो नदियाँ नहीं आंसू थे मेरे,
जिस पर वो कश्ती चलाते रहे,
मंजिल मिले उन्हें यह चाहत थी मेरी,
इसलिए हम आंसू बहाते रहे.
उसका अक्स दिल में इस कदर बसा है,
बरसों आँसू बहे मगर तसवीर न धुली.
ये तो अच्छा है कि आँसू बे रंग हुआ करते है,
वरना रातों को भीगे तकिये सारे राज़ खोल देते.
आंसू मेरे देखकर तू परेशान क्यों है ऐ दोस्त,
ये वो अल्फाज हैं जो जुबान तक आ न सके.
लगता है मैं भूल चुका हूँ मुस्कुराने का हुनर
कोशिश जब भी करता हूँ आँसू निकल आते हैं.
हर रात रो-रो के उसे भुलाने लगे,
आंसुओं में उस के प्यार को बहाने लगे,
ये दिल भी कितना अजीब है कि,
रोये हम तो वो और भी याद आने लगे.
कौन कहता है कि
आंसुओं में वज़न नहीं होता,
एक भी छलक जाता है
तो मन हल्का हो जाता है.
अश्क़ ही मेरे दिन हैं अश्क़ ही मेरी रातें,
अश्कों में ही घुली हैं वो बीती हुयी बातें.


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