किसी ने हमें आशिक कहा !
किसी ने हमें दीवाना कहा !!
इन आँखों में आँसू तब आए !
जब उन्होंने हमें बेगाना कहा !!
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जब भी करीब आता हूँ बताने के लिए !
जिंदगी दूर रखती हैं सताने के लिए !!
महफिलों की शान न समझना मुझे...!
मैं तो हँसता हूँ गम छुपाने के लिए !!
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जो कहते थे तुम्हे भूल न पायेंगे !
मैंने उनके दरवाजे पर अपनी तस्वीर जली देखि !!
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आदत हैं तेरी याद आने की !
इन आँखों को तेरी एक झलक पाने की !!
हमारी तो तमन्ना हैं तुमको पाने की !
पर शायद तुम्हारी आदत हैं हमें तड़पाने की !!
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आदत हैं तेरी याद आने की !
इन आँखों को तेरी एक झलक पाने की !!
हमारी तो तमन्ना हैं तुमको पाने की !
पर शायद तुम्हारी आदत हैं हमें तड़पाने की !!
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वक्त की गर्दिश में बह जाने दो !
जिंदगी जैसे गुजरती हैं गुजर जाने दो !!
मेरे दिल ने कभी फूलों की तमन्ना की थी !
आज कांटे ही को दामन से लिपट जाने दो !!
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उसकी हथेली पर अपना नाम देखकर बहोत खुशी हुई,
फिर उसने बड़े मासूम लहजे में कहा तेरे हम नाम और भी हे.
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आपकी शायरी को पढ़ कर एक विचार आया है
की क्यों नहीं आप २ नए सूत्र शुरू करते.
पहले सूत्र का नाम रखें...."मेरा पहला प्यार"
जिसमे सभी सदस्यों को अपने पहले प्यार को लिखने के लिए आमंत्रित करें.
इससे एक बहुत ही रूमानी सूत्र का निर्माण होगा.
और हम सभी सदस्यों को एक दूसरे की पहली लव स्टोरी पता चलेगी.
इसी प्रकार का सूत्र निकिता भारद्वाज जी ने
पहले बनाया था जो की बाद में चौपाल में तब्दील कर दिया गया.
यकीन मानिए ,ये एक बहुत ही रोचक सूत्र होगा.
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जिंदगी जैसी तमन्ना थी, नहीं, कुछ कम है
हर घड़ी होता है एहसास कहीं कुछ कम है
घर की तामीर तसव्वुर ही में हो सकती है
अपने नक़्शे के मुताबिक़ ये ज़मीं कुछ कम है
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इस से पहले के बे-वफ़ा हो जाएं
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएं
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खातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आपका ईमान तो गया
दिल लेके मुफ़्त, कहते हैं कुछ काम का नहीं
उलटी शिकायतें रहीं, एहसान तो गया
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मैं जब उसकी याद में खो सा जाता हूँ |
वो खुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे |
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शायद तू कभी प्यासा मेरी तरफ लौट आये
आँखों में लिए फिरता हूँ , दरिया तेरी खातिर
है मेरी प्यास की शिद्दत पे अगर शक तुझको
ला मेरे सामने बहता हुआ दरिया रख दे |
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हाल पूछती नहीं दुनिया जिंदा लोगों का,
चले आते हैं ज़नाज़े पे बारात की तरह...
रिहान जी गजब चीज पेश करते हो शानदार
वाह........
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इस से पहले के बे-वफ़ा हो जाएं
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएं
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इस से पहले के बे-वफ़ा हो जाएं
क्यों न ऐ दोस्त हम जुदा हो जाएं
तू भी हीरे से बन गया पत्थर
हम भी कल जाने क्या से क्या हो जाएं
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खातिर से या लिहाज़ से मैं मान तो गया
झूठी क़सम से आपका ईमान तो गया
दिल लेके मुफ़्त, कहते हैं कुछ काम का नहीं
उलटी शिकायतें रहीं, एहसान तो गया
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मैं जब उसकी याद में खो सा जाता हूँ |
वो खुद भी बात करे तो बुरा लगे है मुझे |
बहुत उम्दा कहा आपने.....
न जाने इतनी मोहब्बत कहाँ से आ गयी है उसके लिए,
के मेरा दिल भी उसकी खातिर मुझ से रूठ जाता है....
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ये मरना, ये कफ़न, ये कब्र तो रश्म-ए-शरियत है "ग़ालिब"
मर तो तब ही गए थे जब हसरत-ए-इश्क दिल में जगी थी
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यूँ जज़्ब कर लिया है तुझे रूह में के अब,
ए दोस्त तुझको पाने की हसरत नहीं रही....
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आज बुहत मन हे की कुछ कर गुजरू में
लेकिन फिर सोचता हु आज नहीं
कल करे गे ...................
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कदम रुक से गये है फुल बिकते देखकर फराज
मै अक्सर उसे केहता था मुहब्बत फुल होती है
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कभी कहा न किसी से तेरे फ़साने को
न जाने कैसे खबर हो गई ज़माने को
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क्या करे जब किसी की याद आए !
हर धड़कन पे किसी का नाम आए !!
कैसे कटेगी ये लम्हे इंतज़ार के...!
उसके इश्क में हर घरी मेरी जान जाए !!
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चंद सिक्कों में बिकता है यहाँ इंसान का ज़मीर,
कौन कहता है मेरे मुल्क में मंहगाई बहुत है...
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हर वक़्त मेरी खोज में रहती है तेरी याद,
तूने तो मेरे वजूद की तन्हाई भी छीन ली....
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आज सड़कों पर लिखे हैं सैंकड़ों नारे न देख
घर अँधेरा देख तू, आकाश के तारे न देख।
एक दरिया है यहाँ पर दूर तक फैला हुआ
आज अपने बाजुओं को देख पतवारें न देख।
अब यक़ीनन ठोस है धरती हक़ीक़त की तरह
यह हक़ीक़त देख, लेकिन ख़ौफ़ के मारे न देख
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वे सहारे भी नहीं अब, जंग लड़नी है तुझे
कट चुके जो हाथ, उन हाथों में तलवारें न देख।
दिल को बहला ले, इजाज़त है, मगर इतना न उड़
रोज़ सपने देख, लेकिन इस क़दर प्यारे न देख।
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ये धुँधलका है नज़र का, तू महज़ मायूस है
रोग़नों को देख, दीवारों में दीवारें न देख।
राख, कितनी राख है, चारों तरफ़ बिखरी हुई
राख में चिंगारियाँ ही देख, अँगारे न देख।
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दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ
बाज़ार से गुज़रा हूँ ख़रीदार नहीं हूँ
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चंद सिक्कों में बिकता है यहाँ इंसान का ज़मीर,
कौन कहता है मेरे मुल्क में मंहगाई बहुत है...
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हर वक़्त मेरी खोज में रहती है तेरी याद,
तूने तो मेरे वजूद की तन्हाई भी छीन ली....
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रिहान जी,
आपके शेरों के लिए तो एक ही लफ्ज़ बेसाख्ता जुबां पर आ जाता है....लाजवाब
काफी दिनों के बाद आपने फिर से इस सूत्र में वापसी की है.
अब गायब मत हो जाइएगा.
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मेरे वजूद से लिपटी खुशबू तेरे नाम की हैं !
मेरी हर धड़कन तेरे नाम की हैं !!
इतना यकीन करले एय मेरे हम नाशी....!
बिन तेरे मेरी जिंदगी बेनाम सी हैं !
दोस्त,
आप तो इस सूत्र पर छा ही गए हो.
बड़े ही दर्द भरे शेर आप प्रस्तुत कर रहे हो.,
जो पहली ही नज़र में गहराई तक सोचने को मजबूर कर देते हैं.
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हर वक़्त मेरी खोज में रहती है तेरी याद,
तूने तो मेरे वजूद की तन्हाई भी छीन ली....
बेहतरीन शेर के लिए धन्यवाद रेहान जी ....................
उफ़ ये यादों का तसलसुल ये ख्यालों का हुजूम
आपने छीन ली मुझसे मेरी तन्हाई भी |
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