कभी दोस्ती कहेंगे कभी बेरुख़ी कहेंगे....!!!
जो मिलेगा कोई तुझसा उसे ज़िन्दगी कहेंगे....!!!
तेरा देखना है जादू तेरी गुफ़्तगू है खुशबू....!!!
जो तेरी तरह चमके उसे रोशनी कहेंगे....!!!
नए रास्ते पे चलना है सफ़र की शर्त वरना....!!!
तेरे साथ चलने वाले तुझे अजनबी कहेंगे....!!!
है उदास शाम राशिद नहीं आज कोई क़ासिद....!!!
जो पयाम उसका लाए उसे चांदनी कहेंगे....!!!
तक़रार क्या करूं....!!!....!!!....!!!
जो कुछ कहो क़ुबूल है तक़रार क्या करूं....!!!
शर्मिंदा अब तुम्हें सर-ए-बाज़ार क्या करूं....!!!
मालूम है की प्यार खुला आसमान है....!!!
छूटते नहीं हैं ये दर-ओ-दीवार क्या करूं....!!!
इस हाल मे भी सांस लिये जा रहा हूँ मैं....!!!
जाता नहीं हैं आस का आज़ार क्या करूं....!!!
फिर एक बार वो रुख-ए-मासूम देखता....!!!
खुलती नहीं है चश्म-ए-गुनाहगार क्या करूं....!!!
ये पुर-सुकून सुबह ये मैं ये फ़ज़ा शऊर....!!!
वो सो रहे हैं अब उन्हें बेदार क्या करूं....!!!
जवानी का मोड़....!!!....!!!
लोग हर मोड़ पे रुक-रुक के संभलते क्यों हैं....!!!
इतना डरते हैं तो फिर घर से निकलते क्यों हैं....!!!
मैं न जुगनू हूँ....!!! दिया हूँ न कोई तारा हूँ....!!!
रोशनी वाले मेरे नाम से जलते क्यों हैं....!!!
नींद से मेरा ताल्लुक़ ही नहीं बरसों से....!!!
ख्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यों हैं....!!!
मोड़ होता है जवानी का संभलने के लिए....!!!
और सब लोग यहीं आके फिसलते क्यों हैं....!!!
दिलों में आग लबों पर गुलाब रखते हैं....!!!
सब अपने चेहरों पे दोहरी नका़ब रखते हैं....!!!
हमें चराग समझ कर बुझा न पाओगे....!!!
हम अपने घर में कई आफ़ताब रखते हैं....!!!
बहुत से लोग कि जो हर्फ़-आश्ना भी नहीं....!!!
इसी में खुश हैं कि तेरी किताब रखते हैं....!!!
ये मैकदा है....!!! वो मस्जिद है....!!! वो है बुत-खाना....!!!
कहीं भी जाओ फ़रिश्ते हिसाब रखते हैं....!!!
हमारे शहर के मंजर न देख पायेंगे....!!!
यहाँ के लोग तो आँखों में ख्वाब रखते हैं....!!!
हमसफ़र नही जाना....!!!....!!!....!!!
बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये....!!!
कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये....!!!
करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला....!!!
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये....!!!
मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना....!!!
ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये....!!!
अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए....!!!
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये....!!!
गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा....!!!
गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये....!!!
तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़'
इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये....!!!
कभी मुझ को साथ लेकर....!!! कभी मेरे साथ चल के....!!!
वो बदल गए अचानक....!!! मेरी ज़िन्दगी बदल के....!!!
हुए जिस पे मेहरबाँ तुम....!!! कोई ख़ुशनसीब होगा....!!!
मेरी हसरतें तो निकलीं....!!! मेरे आँसूओं में ढल के....!!!
तेरी ज़ुल्फ़-ओ-रुख़ के क़ुर्बाँ....!!! दिल-ए-ज़ार ढूँढता है....!!!
वही चम्पई उजाले....!!! वही सुरमई धुंधल के....!!!
कोई फूल बन गया है....!!! कोई चाँद कोई तारा....!!!
जो चिराग़ बुझ गए हैं....!!! तेरी अंजुमन में जल के....!!!
मेरे दोस्तो ख़ुदारा....!!! मेरे साथ तुम भी ढूँढो....!!!
वो यहीं कहीं छुपे हैं....!!! मेरे ग़म का रुख़ बदल के....!!!
तेरी बेझिझक हँसी से....!!! न किसी का दिल हो मैला....!!!
ये नगर है आईनों का....!!! यहाँ साँस ले संभल के....!!!
शायरी से दिलचस्पी....!!!....!!!....!!!
मेरी रातों की राहत....!!! दिन के इत्मिनान ले जाना....!!!
तुम्हारे काम आ जायेगा....!!! यह सामान ले जाना....!!!
तुम्हारे बाद क्या रखना अना से वास्ता कोई....!!!
तुम अपने साथ मेरा उम्र भर का मान ले जाना....!!!
शिकस्ता के कुछ रेज़े पड़े हैं फर्श पर चुन लो....!!!
अगर तुम जोड़ सको तो यह गुलदान ले जाना....!!!
तुम्हें ऐसे तो खाली हाथ रुखसत कर नहीं सकते....!!!
पुरानी दोस्ती है....!!! कि कुछ पहचान ले जाना....!!!
इरादा कर लिया है तुमने गर सचमुच बिछड़ने का....!!!
तो फिर अपने यह सारे वादा-ओ-पैमान ले जाना....!!!
अगर थोड़ी बहुत है....!!! शायरी से उनको दिलचस्पी....!!!
तो उनके सामने मेरा यह दीवान ले जाना....!!!
सितारे न शमां न चांद....!!!....!!!....!!!
ये हक़ीक़त है कि होता है असर बातों मे....!!!
तुम भी खुल जाओगे दो-चार मुलक़ातों मे....!!!
तुम से सदियों की वफाओं का कोई नाता न था....!!!
तुम से मिलने की लकीरें थीं मेरे हाथों मे....!!!
तेरे वादों ने हमें घर से निकलने न दिया....!!!
लोग मौसम का मज़ा ले गए बरसातों में....!!!
अब न सूरज न सितारे न शमां न चांद....!!!
अपने ज़ख्म़ों का उजाला है घनी रातों मे....!!!
इस चमन में उदासी बनी रह गयी....!!!
तुम न आये ....!!! तुम्हारी कमी रह गयी....!!!
हसरतों में जिया फिर भी अफ़सोस है....!!!
जुस्तजू दुआओं की बची रह गयी....!!!
दिल जलाने से फुर्सत कहाँ थी उसे....!!!
शम्मा जो थी बुझी वो बुझी रह गयी....!!!
जो मिला था बसर के लिये कम न था....!!!
पर ज़रूरत नयी कुछ लगी रह गयी....!!!
पत्थरों के दिलों में नमी देखिये....!!!
जो उगी घास थी वो हरी रह गयी....!!!
जिस नज़र की हिमायत में तुम थे सदा....!!!
वो नज़र तो झुकी की झुकी रह गयी....!!!
ओस के चंद कतरों से होता भी क्या....!!!
प्यास जैसी थी वैसी ही रह गयी....!!!
रात भर तन्हा....!!!....!!!....!!!
जमाना सो गया और मैं जगा रातभर तन्हा
तुम्हारे गम से दिल रोता रहा रातभर तन्हा ....!!!
मेरे हमदम तेरे आने की आहट अब नहीं मिलती
मगर नस-नस में तू गूंजती रही रातभर तन्हा ....!!!
नहीं आया था कयामत का पहर फिर ये हुआ
इंतजारों में ही मैं मरता रहा रातभर तन्हा ....!!!
अपनी सूरत पे लगाता रहा मैं इश्तहारे-जख्म
जिसको पढ़के चांद जलता रहा रातभर तन्हा ....!!!
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा....!!!
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा ....!!!
बेवक़्त अगर जाऊँगा....!!! सब चौंक पड़ेंगे....!!!
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा ....!!!
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है....!!!
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा ....!!!
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं....!!!
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा ....!!!
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला....!!!
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा ....!!!....!!!
अपने होंठों पर सजाना....!!!....!!!....!!!
अपने होंठों पर सजाना चाहता हूँ....!!!
आ तुझे मैं गुन गुनाना चाहता हूँ....!!!
कोई आँसू तेरे दामन पर गिरा कर....!!!
बूँद को मोती बनाना चाहता हूँ....!!!
थक गया मैं करते करते याद तुझको....!!!
अब तुझे मैं याद आना चाहता हूँ....!!!
जो बना वायस मेरी नाकामियों का....!!!
मैं उसी के काम आना चाहता हूँ....!!!
छा रहा है सारी वस्ती पे अँधेरा....!!!
रौशनी को घर जलाना चाहता हूँ....!!!
फूल से पैकर तो निकले बे-मुरब्बत....!!!
मैं पत्थरों को आज़माना चाहता हूँ....!!!
रह गयी थी कुछ कमी रुसवायिओं में
फिर क़तील उस दर पे जाना चाहता हूँ....!!!
आखिरी हिचकी तेरे जाने पे आये....!!!
मौत भी मैं शायराना चाहता हूँ ....!!!
अपने होंठों पर सजाना शायरी
आँखों से मेरे इस....!!!....!!!....!!!
आँखों से मेरे इस लिए लाली नहीं जाती....!!!
यादों से कोई रात खा़ली नहीं जाती....!!!
अब उम्र ना मौसम ना रास्ते के वो पत्ते....!!!
इस दिल की मगर ख़ाम ख़्याली नहीं जाती....!!!
माँगे तू अगर जान भी तो हँस कर तुझे दे दूँ....!!!
तेरी तो कोई बात भी टाली नहीं जाती....!!!
मालूम हमें भी हैं बहुत से तेरे क़िस्से....!!!
पर बात तेरी हमसे उछाली नहीं जाती....!!!
हमराह तेरे फूल खिलाती थी जो दिल में....!!!
अब शाम वहीं दर्द से ख़ाली नहीं जाती....!!!
हम जान से जाएंगे तभी बात बनेगी....!!!
तुमसे तो कोई बात निकाली नहीं जाती ....!!!
आँखों से मेरे इस शायरी
अपनी आँखों के समंदर में उतर जाने दे....!!!
तेरा मुजरिम हूँ मुझे डूब के मर जाने दे ....!!!
ऐ नए दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना....!!!
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे ....!!!
आग दुनिया की लगाई हुई बुझ जाएगी....!!!
कोई आँसू मेरे दामन पर बिखर जाने दे ....!!!
ज़ख़्म कितने तेरी चाहत से मिले हैं मुझको....!!!
सोचता हूँ कि कहूँ तुझसे मगर जाने दे ....!!!
मैं खिल नहीं सका....!!!....!!!....!!!
मैं खिल नहीं सका कि मुझे नम नहीं मिला....!!!
साक़ी मिरे मिज़ाज का मौसम नहीं मिला ....!!!
मुझ में बसी हुई थी किसी और की महक....!!!
दिल बुझ गया कि रात वो बरहम नहीं मिला ....!!!
बस अपने सामने ज़रा आँखें झुकी रहीं....!!!
वर्ना मिरी अना में कहीं ख़म नहीं मिला ....!!!
उस से तरह तरह की शिकायत रही मगर....!!!
मेरी तरफ़ से रंज उसे कम नहीं मिला ....!!!
एक एक कर के लोग बिछड़ते चले गए....!!!
ये क्या हुआ कि वक़्फ़ा-ए-मातम नहीं मिला ....!!!
मुझ में ख़ुशबू बसी उसी की है....!!!
जैसे ये ज़िंदगी उसी की है ....!!!
वो कहीं आस-पास है मौजूद....!!!
हू-ब-हू ये हँसी उसी की है....!!!
ख़ुद में अपना दुखा रहा हूँ दिल....!!!
इस में लेकिन ख़ुशी उसी की है....!!!
यानी कोई कमी नहीं मुझ में....!!!
यानी मुझ में कमी उसी की है....!!!
क्या मेरे ख़्वाब भी नहीं मेरे....!!!
क्या मेरी नींद भी उसी की है ?
मुझ में ख़ुशबू बसी उसी शायरी
अपने हाथों की लकीरों....!!!....!!!....!!!
अपने हाथों की लकीरों में बसा ले मुझको
मैं हूँ तेरा तो नसीब अपना बना ले मुझको....!!!
मुझसे तू पूछने आया है वफ़ा के माने
ये तेरी सादा-दिली मार ना डाले मुझको....!!!
ख़ुद को मैं बाँट ना डालूँ कहीं दामन-दामन
कर दिया तूने अगर मेरे हवाले मुझको....!!!
बादाह फिर बादाह है मैं ज़हर भी पी जाऊँ ‘क़तील’
शर्त ये है कोई बाहों में सम्भाले मुझको....!!!
हम तो हर बार मोहब्बत से....!!!....!!!....!!!
हम तो हर बार मोहब्बत से सदा देते हैं....!!!
आप सुनते हैं और सुनके भुला देते हैं....!!!
ऐसे चुभते हैं तेरी याद के खंजर मुझको....!!!
भूल जाऊं जो कभी याद दिला देते हैं....!!!
ज़ख्म खाते हैं तेरी शोख निगाहों से बहुत....!!!
खूबसूरत से कई ख्वाब सजा लेते हैं....!!!
तोड़ देते हैं हर एक मोड़ पे दिल मेरा....!!!
आप क्या खूब वफाओं का सिला देते हैं....!!!
दोस्ती को कोई उन्वान तो देना होगा....!!!
रंग कुछ इस पे मोहब्बत का चढा देते हैं....!!!
तल्खी-ए-रंज-ए-मोहब्बत से परीशां होकर....!!!
मेरे आंसू तुझे हंसने की दुआ देते हैं....!!!
हाथ आता नही कुछ भी तो अंधेरों के सिवा....!!!
क्यूँ सरे शाम यूँ ही दिल को जला लेते हैं....!!!
हम तो हर बार मोहब्बत का गुमा करते हैं....!!!
वो हर एक बार मोहब्बत से दगा देते हैं....!!!
दम भर को ठहरना मेरी फितरत न समझना....!!!
हम जो चलते हैं तो तूफ़ान उठा देते हैं....!!!
आपको अपनी मोहब्बत भी नही रास आती....!!!
हम तो नफरत को भी आंखों से लगा लेते हैं ....!!!
ज़रा-सी देर में दिलकश नज़ारा डूब जायेगा....!!!
ये सूरज देखना सारे का सारा डूब जायेगा....!!!
न जाने फिर भी क्यों साहिल पे तेरा नाम लिखते हैं....!!!
हमें मालूम है इक दिन किनारा डूब जायेगा....!!!
सफ़ीना हो के हो पत्थर....!!! हैं हम अंज़ाम से वाक़िफ़....!!!
तुम्हारा तैर जायेगा हमारा डूब जायेगा....!!!
समन्दर के सफर में किस्मतें पहलू बदलती हैं....!!!
अगर तिनके का होगा तो सहारा डूब जायेगा....!!!
मिसालें दे रहे थे लोग जिसकी कल तलक हमको....!!!
किसे मालूम था वो भी सितारा डूब जायेगा....!!!
रुके से हम रुके से तुम....!!!....!!!....!!!
रुके से हम रुके से तुम और ज़माना बढ़ गया....!!!
ये तेरा दिल मेरे दिल में जाने कब उतर गया ....!!!
अभी तो प्यार की शुरुआत हो रही है सनम....!!!
अभी से ही दिल मेरा तेरा ठिकाना बन गया ....!!!
तुम मिले तो यूं लगा मिल गया मेरा खुदा....!!!
नज़रे मिली तुमसे मेरी और फ़साना बन आया ....!!!
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